Sunday, February 20, 2011

Hindi poems

पावस ऋतु

शीतल हवा सन सनाती चली

ऐसी जादुई मधुर ध्वनि

जैसी कृष्ण की बाँसुरी

नभ में लहराने लगी लाली

वर्षा की सूचना देने वाली ओरनी

सारे भू पर छाई

घने बादलों की परछाई

नाचे फूल फैलाए पंखुड़ी

प्यासी धरती ललचाई,

चमक उठी बिजली

मानो गरज उठी शेरनी!

ग्रीष्म भयभीत भागी,

पावस हूई विजयी!

अकाल से पीड़ित अभागी

थी धरा सूखी!

घनघोर घटा जब छाई

वर्षा गिरी झिलमिल झिलमिल

भागी वसुंधरा फूली समाती!

मानो ऐसी चंचल खुशी,

जैसे दुल्हन की आँखों में झलकती,

दूर से देख के बाराती

ऐसे मिले बारिश और भूमि

मानो बिछुड़े साथी गए घुल मिल!

पुरानी स्मृतियाँ याद आईं!

तन की क्लान्ती हूई शिथिल!

वर्षा की महिमा न्यारी!

बूंद बूंद में बन गई झील

कलियाँ गई खिल

फूँटपरी क्यारी

फसल रही मचल,

पेड़ पौधों में हूई हलचल

उपज उठे फूल फल

नदियां चली सागर की ओर कलकल

धरा हरी भरी

लगती स्वच्छ, निर्मल

और नूतन हर पल

छाई फिर से हरियाली

इन्द्रधनुषी रंग से गगन थी रंगीली

देख के ऐसी दिव्य छवि

प्रेरित हो हर कवि!

वर्षा की महिमा न्यारी!

This was my first effort towards Hindi poetry. I was taking Hindi tuition at home, when I had to pen poetry in Hindi for my student. I had to do his homework! Though I am affluent in English poetry,I had myself never written poetry in Hindi. It is hard to expect my student to write one. Not everybody can become a poet even if his school teacher believes so. Naturally Hindi is German to a south Indian! I am well versed in Hindi so I tried my luck with poetry and this was the result! From then on I continued to write poetry in Hindi as and when I felt to do so.

चुलबुली

निशि की चादर ओरे

चुलबुली सी प्यारी पंछी;

लगती थी बहुत अच्छी

आसमान में रहने वाली नन्ही परी

मुझे धरती पर घायल मिली I

ले आई उसे घर

देने उसे जीवनदान

था बस एक अरमान

ले ले जल्द उड़ान!

छू कर उसका तन

महसूस करती उसकी धड़कन;

देख के उसको खिल उठता मन!

श्वेत और श्याम रंग के पंख फैलाए

उठIती थी वो लम्बी गर्दन

खाने के लिये,

पीले होंठों से चहचहाती

बोलती अपनी प्यारी जबानी I

चाहती थी वो उड़ना

आकाश को छूना,

पर उसके नन्हें पर टूट गये!

वो नन्ही सी जान

थी बस दो दिन की मेहमान

बन गई स्वर्ग का पथिक!

हो गई भगवान को प्यारी!

लीया क्यों जिंदगी ने जन्म

जब छीन लेना था दम?

चल बसी चुलबुली

पर अब भी सुनाई पड़ती है

उसकी किलकारी

उसकी शहद भरी मिठास

है दिल के बहुत पास!

This poem is dedicated to Chulbuli a baby bird I brought home. I found it wounded in the street, unable to fly, it was quivering in fear. I rescued it so that it may live unscathed by its predators. I wanted to shelter it till it learns to fly. Unfortunately it lived only two days. I can't imagine how it died.

जीवन
जलते राख में चलता है जीवन!
जैसे सूरज की अगन
से जलता गगन!
पिघलता बादल है मेरा मन!
बुँदों में अर्पण
जिंदगी की दर्पण!
धिमी सी धड़कन
जैसे धड़कता है भूकम्प!
शोलों में लोट-पोट होती है ये जीवन!
जैसे ज्वालामुखी से उबरता है पर्वत!
जीवन की यहि हरकत!
अंगारों की जलन
से तर्पता है मन!
लगता है जैसे दामन
में कांटों की चुभन!
आशा की किरणें
बदलती दिशाऐं!
भटकती रही वन-वन!
कैसी ये घुटन?
कब तक करुँ मैं सहन?
जीवन की उलझन
कैसे मैं सुल्झाऊँ?
जिस्म की तर्पण
कैसे मैं समझाऊँ?

आशा और निराशा
मझधार पर हमेशा!
खुदा देख रहा है तमाशा!
जिन पर इतना है भरोसा!
खुशियाँ देता गुन-गुन कर!
कर्ज लेता चुन-चुन कर!
जो मैं चाहूँ
वो मैं पाऊँ!
पाया तो भी,
मुराद हुई पुरी!
रह गई अधुरी!
जितनी थी आशा,
पाया उससे कई गुना कम!
जैसे बेबरस बादलों की गर्जन
से प्यासा है भुवन!
चिंगारी में पनपती है ये जीवन!
जैसे ज्वालामुखी से उबरता है पर्वत!
जिंदगी की यहि हरकत!

जीवन है एक भ्रमण
धोका हो हर कदम!
खुदा कर दो इतना तो रहम!
मुश्किल के इन रास्तों में
तोर दूँ ना दम!
जीवन में लग जाए ग्रहण!
जितना भी कर लो जतन!
कितना भी कर लो नमन!
जो आशा रह गई अधुरी
होगी क्या वो पुरी?
कैसे हो गई खुशियाँ हरण?
क्यों रास्ते हैं कम?
क्यों निराशाओं के गम
से नदियाँ हैं नम?
कौन पूछे सवाल?
इस प्यास को कैसे बुझाऊँ?
इन संकटों के जंजाल
को कैसे सुलझाऊँ?
मेरा मन जैसे रेगिस्तान में कंकाल!
आँधी वाले पवन
से मुर्झाया चमन!
लेहरों की बहाव
में बहता हुआ नाव!
आने वाला है सैलाब!
सुनने वाला कौन ईशारे?
कब पहुँचेगा आशा किनारे?
शोलों में पनपती है ये जीवन!
जैसे ज्वालामुखी से उबरता है पर्वत!
जिंदगी की यहि हरकत!

ख्वाहिशें
बेताब दिल की तमन्ना
कर रही है प्रार्थना!
बेताब दिल की तमन्ना,
कर रही है
विपत्ति का सामना!
क्या पुरी होगी कामना?
निशब्द है वक्त,
स्तब्ध है रक्त
थम गया है पल!
मन में हो रहा हलचल!
इस दलदल
से कब मिलेगी राहत?
कब खुलेगा ये राज?
हर आहट
में लूँ ठंडी सांस!

समय की धिमी रफ़्तार
में बहती है आस!
कब तक करुँ मैं इंतजार?
कब मिटेगी प्यास?
कब मैं लूँ ठंडी आह?
संकट की हर भंवर, हर लहर
से कब मिलेगी राह?
किस दिशा बहती है स्रोत?
रेत की परतों से ओतप्रोत
है वक्त का कफ़न,
ख्वाहिशें हैं दफ़न!
दिल तो है असमंजस में
मरूद्यान या मरीचिका?
उम्मीद के दरमियान
होती है जीविका!
जिवन की यहि अभियान!


हमारी जोड़ी

हम दोनो दो पंछी
प्रेम के सम्बन्धी!
हवा के झोके
में झुले हम डाली डाली!
आसमान की लाली
में हम उड़े,
लुका छुपी खेले
हरे हरे
पत्तियों के पिछे!
चोंच में चोंच
डाले दिल रहा धड़क,
हमारी एक सोच!
फ़ुलों की महक
हमें एक डोर में खिचे!
संग चुगते हैं दाना,
हमारी ये जुगल
शिकारी के चुंगल
से बचकर
करते हैं विलास!
रस की मिठास
चोंच में भरकर
गाते हम गाना!
हम दोनो दो पंछी
प्रेम के सम्बन्धी!

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